दमोह। छतरपुर जिले में स्थित बक्सवाहा तहसील में वनों की कटाई का मामला दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। देश के कई हिस्सों से अब आगे आकर लोग जंगल की कटाई का विरोध कर रहें है। जिसको लेकर बकायदा मुहीम चलाई जा रही है। इसी बीच दमोह (Damoh) से भी व्यापक रैली अयोजित की जा रही है। जो आज गुरुवार 1 जुलाई 2021 को 'जंगल के जोगी' (यूथ कलेक्टिव ग्रुप) के द्वारा बक्सवाहा के जंगल (Buxwaha Forest) में हीरों की खदान (Diamond Mine) के लिए जंगलों की कटाई विरोध करेगी।
कटाई के विरोध में आज दमोह के तहसील ग्राउंड (Tehsil Ground) मैदान से दोपहर 12 बजे बक्सवाहा की ओर रैली (Rally) प्रस्थान करेगी। इसमें बुंदेलखंड के साथ साथ देश की बाकी जगहों से भी लोग शामिल होने आ रहे हैं। इस रैली का मुख्य उद्देश्य इस प्रोजेक्ट से सीधे तौर पर प्रभावित होने वाले लोगों के अंदर जनचेतना जागृत करना और प्रोजेक्ट में शामिल समूहों के अंदर मानवीय और पर्यावरणीय चेतना जगाना है।
रैली में प्रमुख रुप से दृगपाल सिंह लोधी, सचिन मोदी , सुहानियो, सौरभ तिवारी, चंद्रभान सिह लोधी, रूप सिंह लोधी, आयुष ठाकुर सहित ढेरो युवा विरोध तथा अनेकों संगठन के प्रमुख लगातार तीन दिन तक इस यात्रा में शामिल होंगे। रैली में जुड़ने से लोगों को हमारी मातृभूमि और प्रकृति के प्रति अपना प्रेम दशाने का एक मौका मिलेगा साथ ही हम उन लोगों को भी प्रभावित कर पाएंगे जो अभी तक इस आंदोलन से अपने आपको अलग रख रहे हैं। यह रैली 1 जुलाई को दमोह से निकलकर बक्सवाहा 3 तारीख को पहुंचेगी इस बीच यह समूह लगभग 53 किलोमीटर की शांतिपूर्ण पदयात्रा करेगी।
स्थानीय ग्रामीणों ने बनाई समिति:
बक्सवाहा के जंगलों को बचाने के लिए स्थानीय आदिवासियों ने एक समिति का गठन कर लिया है। वे इसके माध्यम से इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में एक मामला दायर कर इस निर्णय पर रोक लगाने की अपील की गई है। आज भोपाल की एनजीटी में सुनवाई होनी है। सुनवाई में कंपनी को अपना पक्ष पेश करने का निर्देश दिया गया है। एनजीटी को बताया गया है कि रियो टिंटो एक्सप्लोरेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (आरटीईआईपीएल) नामक एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ने बक्सवाहा संरक्षित वन, सगोरिया गांव, बक्सवाहा तहसील, छतरपुर जिला में 2008 में बंदर डायमंड ब्लॉक की खोज की थी। बाद में कंपनी ने इसे मध्यप्रदेश सरकार (MP Government) को दे दिया था। इसके बाद एक नीलामी के जरिये बिरला ग्रुप (Birla Group) की कंपनी ने इसके खनन का अधिकार हासिल कर लिया। परियोजना की अनुमानित लागत 2500 करोड़ रुपये है। कंपनी ने इस क्षेत्र के जंगलों के बदले स्थानीय आदिवासी युवाओं को रोजगार और जंगल के बदले वृक्षारोपण की बात कही है, लेकिन आदिवासियों का कहना है कि ये चीजें उनके मूल अधिकारों की भरपाई नहीं कर सकतीं।