आज मनाई जा रही महाराजा छत्रसाल की 371 वीं जयंती, जाने उनके जीवन के बारे में!

आज मनाई जा रही महाराजा छत्रसाल की 371 वीं जयंती

डिजिटल डेस्क। आज के आधुनिक युग में हम धीरे - धीरे अपने पूर्वजों के शौर्य और पराक्रम को भूलते चले जा रहे जिन्होंने अपना सारा जीवन दुष्ट आक्रांताओं से सारे समाज को सुरक्षित रखने में न्योछावर कर दिया उनके इस बलिदान को अगर हम भुला दे तो यह हमारे लिए शर्म की बात होगी। आज हम ऐसे एक वीर युद्धा जिन्हें हम सभी बुन्देल केसरी के नाम से भी जानते है जिनके बारे में कहावत है कहीं जाती है कि 'छत्ता तेरे राज में, धक-धक धरती होय। जित घोड़ा मुख करे, तित-तित फत्ते होय।'

बुंदेलखंड के शिवाजी के रूप में पहचाने जाने वाले महाराजा छत्रसाल और राणा सांगा की शौर्य की परंपरा के वारिस महाराणा प्रताप की आज पूरे देश में जयंती मनाई जा रही है। छतरपुर जिले में इस मौके पर कलेक्टर ने स्थानीय अवकास घोषित किया है। 1671 में 22 साल की उम्र में वीर छत्रसाल ने मराठा वीर शिरोमणि छत्रपति शिवाजी से प्रभावित होकर मुगलों के खिलाफ बगावत कर दी थी। छत्रसाल की बहादुरी के किस्से पन्ना, छतरपुर समेत समूचे बुंदेलखंड में लोकगीतों के रूप में प्रचलित हैं।

महाराजा छत्रसाल
source : twitter

माना जाता है कि महाराजा छत्रसाल ने पराक्रम के दम पर दुश्मनों और स्नेह के बल पर बुंदेली जनता के दिलों पर राज किया है। इसके अतिरिक्त छत्रसाल को कवियों, विद्वानों का सम्मान करने वाला शासक भी माना जाता है। छत्रसाल ने अपनी राजधानी जहां महोबा बनाई वहीं छतरपुर नगर की स्थापना भी की। 83 वर्ष की उम्र में 14 दिसंबर 1731 में उनकी मृत्यु हो गई।

छत्रसाल ने अपने शौर्य के दम पर सबसे पहले पूर्व में चित्रकूट से पन्ना के बीच का इलाका और बाद में पश्चिम में ग्वालियर का बड़ा हिस्सा जीत लिया था। शुरुआती युद्ध में उन्होंने महज 5 घुड़सवारों और 25 तलवारबाजों को लेकर मुगलों के साथ युद्ध किया और उनके छक्के छुड़ा दिए।

छत्रसाल की 271वीं जयंती पर देश-प्रदेश के विभिन्न राजनैतिक दलों, भाजपा संगठन के नेताओं ने ट्वीट भी किया है।



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